Tuesday, July 9, 2013

सुलगते से अंगार में बस हवा की दरकार है ,
लपटें बन सफ़र करते हैं और ख्वाब सी रफ़्तार है |

बुझती सांस की देहलीज़ पर इक दिया बे-खौफ जलता है ,
मिसालें होंसलों की रख ये जिंदा कैसा पहरेदार है |

रोके कब रुके हैं दौर दुनिया के सवालों के ,
उठेंगे जो, रुकेंगे क्यों, जो थामी खुद हमने पतवार है |

तेरी है राह, तेरी मंजिल, तू खुद जो जिम्मेवार है ,
जले जिंदा, जले मुर्दा, तय कर क्या तेरा किरदार है ||

Thursday, May 30, 2013

है बस्ती ख्वाब में घर मेरा |
तुझे मुझसे क्या, मुझे तुझसे क्या ||
में बस जज़्बात पे हस्ता हूँ |
फिर दर्द क्या, और घाव क्या ||

राही मन , तर हो लगन |
चलता बस अपनी धुन मगन ||
मुझे धूपं क्या और छाँव क्या |
फिर अब रुकने का चाव क्या ||

बज़्म-ऐ-इश्क में तान मेरी |
मेरे गीत क्या, मेरे भाव क्या ||
में बस मुस्कान पे मरता हूँ |
अब भीड़ क्या, पथराव क्या ||

Monday, April 29, 2013

मशक्कत अब नहीं होती , दीवार-ओ-दर सलाखों से |
ब्यान-ऐ-आम होता है , हाले-ऐ-दिल का आँखों से ||

तेरी रंगत से सजते रंग, ये तेरी खासियत है |
रफूगर तू मेरी महरम , क्या मेरी शख्सियत है ||

चर्चे रोज़ होते हैं , ख्यालों में तू आने से |
खर्चे रोज़ होते हैं , मेरे दिल के खजाने से ||

क्या है ना , क्या है ना , क्या कहूँ क्या है ना |
गुलरुख जहाँ मेरा, तेरी क़ैद-ऐ-रजा है ना ||





Friday, February 8, 2013


(1)................................................................................................................
सूरज ढलता नही आंधी तूफानो के चलने से | 
मौसम बदलता नही खुद का हिजाब बदलने से ||

(2).................................................................................................................
ज़िन्दगी खूब बीतीकुछ हसरतों के पैमाने में डूब कर |
हँसता है दिल अबयादों से खुद को मनसूब कर ||
मुस्कान भी गिरफ्ते दर्द से छूट करआसमां का रुख करती है |
मानोगुज़रे वक़्त की झोली को हसीन तोहफे से भरती है ||

(3).............................................................................................
अपने खालीपन की क्या मिसाल दें हर लम्हा गुजरते वक़्त एहसान करता है |
हम भी फुरसतों के पहाड़ फ़तेह कर चुके अब भला खाली रहने से कोन  डरता है ||

(4)............................................................................................
ए ज़िन्दगी बस इतना सा करम कर |
थाम ले हाथ मुझे बेफिक्री का भरम कर ||
या खुद से इतना कर दे पराया |
के हर फ़िक्र से साथ छोड़ जाये मेरा साया ||

(5).............................................................................................
इक जाम भर का साथ है तेरा मेरा ज़िन्दगी |
कभी तू मुझ को पीयेकभी मै तुझ को पियूँ  ||
रिश्ता उलझे जज़्बात है तेरा मेरा ज़िन्दगी |
कभी तू मुझ से जीयेकभी मै तुझ से जियूं ||

(6).........................................................................................
बंधी जुबां पे चुप्पी सीकहीं रेशम से सजता साज़ है |
गलियों की हलचल हैकहीं बंद महलों का राज़ है ||
बेकाबू है मनचली हैबहते सपनो की धार है |
तू जैसी भी है ज़िन्दगी तेरी अदा से मुझको प्यार है ||

(7).........................................................................................
ज़िन्दगी जल्द बसर करने की होड़ में इंसानी ज़ात क्यूँ है ,
किसी चाह से पहले अंजामे-ए-चाहत की बात क्यूँ है ,
बाज़ारी हों तो ज़िन्दगी भी बिकने लगे बाजारों में ,
अमीरी की इस दौड़ मेंइतने सस्ते जज़्बात क्यूँ है !

इश्क बाजारों में कहीं खरीदार तलाशता है ,
ना अश्क ना लहू से कुछ उसका वास्ता है ,
थमने दे सांस फिर अपने भी कद्रदान से मुलाक़ात हो ,
की कब्र से हो कर गुज़रता मेरे आशिक रब के घर का रास्ता है !!

(8).....................................................................................
सोने दे ऐ नई सुबह के सूरज तू मुझे सोने दे |
बारिश सी मौजों सा मुझको हर सूखा पार भिगोने दे ||
अभी पलक है कुछ मेरी वजनी सी अभी रात है बाकी आँखों में |
तू एक बार तो सो के देख क्या मज़ा है वक़्त को खोने में ||

तू कैसा राजा बनता हैहर वक़्त गुलामी करता है |
दिन में रोब दिखाता है और रात को चाँद से डरता है ||
आ बैठ मेरी सोहबत में कभी और देख मेरी सपना नगरी |
यहाँ चाँद भी देर से उठता है और सूरज पानी भरता है ||

(9).......................................................................................
इस सबब का हाल क्या बताएं दोस्तों ... के अब होश-बेहोशी में रहते हैं !
हमे तो ज़िन्दगी का नशा है ... सच कहते है जो भी मदहोशी में कहते हैं !!

(10).....................................................................................
यूँ नहीं के आदत है जीने की ...
    ना ये कोई नुखते हैं !
कातिल मिले तो सही ...
    मरने के शौंक हम भी रखते हैं !!

(11).....................................................................................
फितरतन काफिर इन्सान..
  ऐतबार किस का करें ऐ खुदा !
कहते सुना कहीं ..
  के तेरा ही अक्स हर शख्स में है !!

(12)..................................................................................
इश्क की बात क्या कीजे...
  चाल इसकी कौन कर सकेगा बेहतर दर्ज हमसे !
फ़तेह कर सारा जहाँ...
   दीदार भर से दम तोड़ गये थे खुदगर्ज़ हमसे !!

Thursday, January 10, 2013


छोटी सी जिंदगानी , अरमान निकले भी तो कम |
कई बार जिंदा हुए, कई बार दफन हुए हम ||

कोई शिकवा भी नहीं तुझसे ऐ खुदाया |
तेरी कुदरत में जियें हैं , कभी सूखे कभी नम्म ||

उसपे वो करें , खुश रहने की दुआ |
ये कैसी अदा है मेरे अज़ीज़ मेरे सनम ||

रज़ा में तेरी, रज़ा है सब की |
ना मांगूं कुछ ज्यादा, ना चाहूं कुछ कम ||